रोमिंग
जर्नलिस्ट की रिपोर्ट 29
दो
जनवरी 2007 की तारीख थी। जम्मू से चली पूजा एक्सप्रेस दिल्ली पहुंची चुकी थी। पूजा
एक्सप्रेस से उतरते ही जम्मू के बालगोत्रा होटल के मालिक से खाने को लेकर प्यार-भरी शिकवा शिकायत के
साथ राम-राम करके आंटो के लिए आगे बढ़ रहे थे अचानक पीछे से पंडित जी राम-राम की आवाज
सुनाई पड़ी। जम्मू-कश्मीर की जानलेवा सर्दी से दिल्ली आकर राहत महसूस करते हुए पीठ
पर बैग लादकर आगे बढ़ रहे कदम अचानक थम गए। पीछे मुड़कर देखा तो कश्मीर से खदेड़े गए पंडितों
की पीड़ा का जम्मू में बखान करके दिल में पड़े दर्द के छाले आंखों व शब्दों से उड़ेल
लेने वाले पंडित रामनिवास पंगोत्रा अपने भतीजे के साथ थे। दिल्ली आने का कारण मुझसे
पहले वह ही पूछ बैठे तो बताया दिल्ली में मीटिंग हैं। उनसे पूछा तो बोले साहब जम्मू
में कश्मीरी पंडितों किस हाल में जी रहे हैं किसी से छिपा नहीं हैं। आप तो हमारे जैसे
खदेड़े लोगों की कालोनी में आ चुके हैं। भतीजे को लेकर दिल्ली आने का मकसद पूछा तो बोले
एक साहब अपनी दुकान पर काम देने के लिए बुलाएं हैं। दस हजार रुपए महीना देने के साथ
लक्ष्मीनगर में रहने के लिए एक कमरा भी दिलवाने को कहे हैं। इसीलिए आया हूं। कश्मीर
से खदेड़े जाने के बाद जम्मू के बाड़ी ब्राम्हण इलाके डेरा डाले पंगोत्रा जी की पीड़ा
सुनकर दिल में वह घाव फिर हरे हो गए जो खबर करने के लिए उनके जैसे विस्थापितों की कालोनी
में जाकर महसूस किया था। पंगोत्रा जी अनुरोध किया आइए एक कप चाय हमारे साथ पीजिए फिर
आप अपनी मंजिल की तरफ जाइएगा। पहले सीधे नकार देने के लिए बाद दुबारा जब फिर अनुरोध
किया तो बोले कि आप काशी से आए पंडित जी, आपकी चाय का कर्ज नहीं चुका पाऊंगा। पंगोत्रा जी संग चाय पीने की इच्छा को साकार करने के लिए बातों की जलेबी छानते हुए कहा कि इंसान हूं ही
इंसान ही माने,जाति-धर्म का मंत्र नेताओं के लिए ही रहने दें। यह सुनकर वह तैयार हो
गए। स्टेशन के बाहर एक चाय की दुकान पर तीनों लोग पहुंचे तीन चाय के साथ बिस्कुट लाने
के लिए बोला। चाय के इंतजार में पंगोत्रा जी की पीड़ा को न चाहते हुए एक सवाल पूछकर
उकेर दिया कि कश्मीर में हिंदू-मुस्लिम के बीच खाई कब पहली बार आपको दिखी। बोले साहब
हम तो छोटे रहेंगे लेकिन पिता जी बताते थे 1931 में हिंदुओं को मुस्लिम व कश्मीर विरोधी
घोषित करके थोक में हमले हुए। कश्मीर में कितने हिंदुओं को मारकाट डाला गया कोई पूछने
वाला नहीं था। किस तरह पिता जी हम लोगों को हमलावरों से जिंदा बचाकर लाएं वह याद करके जब
जिंदा थे घंटों तवी नदी किनारे जाकर रोते रहते थे। पिता जी बताते थे हमारे गांव
पुप्पुर में हमला हुआ उस समय राजा हरि सिंह ने भी हिंदुओं की कोई मदद नहीं की। हमलावरों
के डर से मासूम बच्चों को मां-बाप रोने नहीं देते थे कहीं रोने की आवाज सुनकर हमलावर
आकर इनको भी न मार दें। श्रीनगर के पास कन्यकूट के गांव में तो 21 पंडितों को ओखली
में डालकर कूट-कूटकर मार डाला गया। हिंदुओं को मार डालने वालों को फांसी की सजा मिली
लेकिन कश्मीर में शेख अब्दुल्ला ने इन हमलावरों को शहीद मानते हुए गांव में शहीद मजार
की नींव डाली गयी। कन्यकूट में तेरह जुलाई को अलगाववादी इन हमलावरों का शहीद दिवस मनाते
हैं। हमारे गांव में 200 परिवार पंडितों के थे, किस तरह वहां बहन-बेटियों की आबरू लूटने
से लेकर मारने का काम इन अलगाववादियों ने किया,मत पूछिए साहब। यह कहते हुए उनके आंखों
में पानी आ गया। ढांढ़स बंधाते हुए कहा पंगोत्रा जी विश्वास करिए एक दिन हिंदुस्तान का
निजाम बदलेगा तो सबकुछ बदलेगा। जहां से आपको खदेड़ा गया वहां आपकी फिर बस्ती गुलजार
होगी। बातचीत के दौर के बीच मेज पर तीन चाय और बिस्कुट आ गयी थी। चाय पीने का आग्रह
करते हुए उनसे कहा कि कश्मीर में हिंदुओं के साथ जो हुआ वह बहुत बुरा हुआ। देश में
वोटबैंक की राजनीति खत्म होने के साथ कभी तो वह दिन आएगा जब धारा 370 हटने के साथ नया
सबेरा आएगा। चाय की एक चुस्की लगा चुके पंगोत्राजी बोले साहब कश्मीरी पंडितों की पीड़ा
का जो दिल में दरिया बह रहा है, वह कभी थमेगा यह मुझे नहीं दिखाई दे रहा है। चाय की
चुस्की संग बिस्कुट का एक टुकड़ा खाने के बाद मैने कहां आज नहीं तो कल वह दिन आएगा,
हम-आप भले ही नहीं देख पाएं लेकिन नई पीढ़ी को जम्मू-कश्मीर में नया सूरज निकलेगा।
विश्वास भरी इन बातों को सुनकर पंगोत्रा जी बोले मातारानी वह दिल जल्द लाएं, यह दिन
देखने के बाद सुकून से मर सकूंगा। यह कहकर वह चाय की एक और चुस्की लेने के लिए गिलास
हाथ में उठा लिए।
क्रमश:
Wonderful
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