माता,गौमाता
व गंगा मइया
जिंदगी
की सफर में फुर्सत के लम्हों में जब यादों के झोंके आते हैं तो सबसे पहले जेहन में
मां फिर गौमाता उसके बाद गंगा मइया का जुड़ाव ऐसा है कि उसके बिना सबकुछ अधूरा लगता
है। जब यूपी से उत्तराखंड नहीं बंटा था तब पापा की पोस्टिंग उत्तरकाशी जिले के थाती
धनारी स्थित राजकीय इंटर कालेज में थी। मां के गर्भ में आने के बाद उसी दौरान पिता
का तबादला राजकीय इंटर कालेज बस्ती हो गया। गांव उस समय बस्ती जिले से कटकर अलग नहीं
हुए संतकबीरनगर जिले के बेलहरकला था। गांव पर ही जन्म होने के बाद दादी-बाबा को देखने का सौभाग्य नहीं मिला। मां की गोद में बड़े होने के बाद गांव से पापा बस्ती शहर के पिकौरा
दत्तूराय मुहल्ले में किराए के मकान पर लेकर ले आएं। यहां पर ही मेरे पीछे छोटे भाई
फिर सबसे छोटी बहन दुनिया में कदम रखी। पिकौरादत्तू राय से रौता चौराहा के पास आज की
तारीख में सरोजबाबा के मकान में किराए पर पहुंचा गया। बस्ती जिले में ही गांव होने
के कारण पापा ने फिर एक मकान बनाने के बारे में अम्मा से राय-मशविरा करके नार्मलस्कूल
के पीछे शिवनगर तुरकहिया में एक जमीन लेने के बाद दो कमरे का मकान निर्माण करवाया।
पीएफ लोन सहित पापा की जमापूंजी से खड़े हुए इस मकान में हम सब पहुंचे तो पापा ने एक
गाय को भी रखने का फैसला किया। एक नजदीकी रिश्तेदार की मदद से गेरूआ रंग की गाय आ गई।
गाय पेट से थी उसके मां बनने के बाद घर में दूध-दही मिलने की आस में हम दोनों भाई गाय
को खिलाने-पिलाने स लेकर नहलाने तक में स्कूल से फ्री होने के बाद जुटे रहते थे।
ठंड
का मौसम था,उपर से बरसात भी। दो कमरे के मकान के बाहर छप्पर भी था,जिसमें गाय रहती
थी। आधी रात को गाय अचानक रंभाना प्रारंभ किया। अम्मा-पापा के साथ हम सब भाई-बहन भी
जग गए। गाय ने एक बछिया को जन्म दिया। ठंड के मौसम में गाय को ओढ़ाने के लिए बोरे का
ओढ़ना तैयार था लेकिन नई नवेली बछिया के लिए कुछ था। ठंड में कांप रही बछिया को पोछने
के बाद दोनों भाई बछिया को उठाकर अपने तख्ते पर बैठाने के साथ उसको रजाई ओढ़ाने के
साथ खुद सोएं। गाय भी बगल में बंधी रह-रहकर वह रजाई के अंदर मुंह डालकर बछिया को चाटती
भी रहती थी। मां-बाप के प्रेरणा से गौमाता की सेवा का पाठ उस रात जो पढ़ने को मिला,वह
आज अपनी नई पीढ़ी के भीतर देखकर खुशी होती है। माता,गौमाता के साथ पढ़ाई की गाड़ी आगे
बढ़ती रही। शिवनगर तुरकहिया से राजकीय इंटर कालेज के बगल स्थित प्राइमरी स्कूल तक दोनों
भाई पैदल आते-जाते थे। प्राइमरी स्कूल के बाद नार्मल स्कूल में दाखिला होने के साथ
गौसेवा को दाना-पानी के साथ बीमार पड़ने पर रोडवेज के आगे पशु अस्पताल तक ले आने-जाने
की जिम्मेदारी भी जुड़ गयी। पढ़ाई के लिए लखनऊ यूनिवर्सिटी जाने से गौमाता से थोड़ी
दूरी बढ़ गई लेकिन प्रेम जस का तस था। त्योहार व छुटटी में घर जाने पर गाय के नजदीक
जाने पर वह अपना गर्दन उठाकर सहलाने का संकेतात्मक आदेश देती रहती थी। मां-गौमाता की
सेवा संग नौकरी में आने पर 1999 में हिंदुस्तान में बनारस में तबादला हो गया। बनारस
का तबादला आदेश के मिलने के बाद पहली बार यहां आया। बनारस आने पर माता-गौमाता के साथ
गंगा मइया भी जिंदगी में जुड़ गयी। हिंदुस्तान का ब्यूरो आफिस होने के कारण शाम को
काम खत्म होने के बाद गंगा मइया के किनारे कुछ पल बिताने की लत लग गई। हिंदुस्तान ब्यूरो
के साथी आदर्श शुक्ला,राजीव द्विवेदी के साथ हिंदुस्तान टाइम्स के अनिरबन भौमिक सहित
हम लोग राणामहल घाट पहुंचकर स्नान-ध्यान के बाद अपने-अपने मंजिल को निकला जाता था।
गंगा मइया के आर्शीवाद की बदौलत ही काशी से कश्मीर,दिल्ली से दार्जिलिंग तक काम करने
के बाद उनसे जुड़ाव बना रहा है। अम्मा-पापा ने अंतिम सांस बस्ती से बनरस आकर गंगा किनारे
ही लिया। समय का पहिया घूमने के बाद बच्चे बड़े होकर पढ़ाई के हॉयर लेबल पर पहुंच गए।
गंगा मइया के आर्शीवाद से काशी में एक कुटी भी बन गई। बच्चों का मां,गौमाता के साथ
गंगा मइया के प्रति प्रेम देखकर लगता है यह मेरा नहीं अम्मा-पापा के पुण्यकर्मों की
संस्कारशाला की देन है। अपनी कुटिया के बाहर गाय से लेकर कुत्तों की फौज कुछ खाने-पीने
के लिए मंडराते देखकर खुशी होती है। दीपावली पर घर की सफाई के साथ दिल की सफाई के दौरान
माता,गौमाता और गंगा मइया को लेकर यादों का यह दीप जलता देखकर आप सबके बीच दीपावली
की शुभकामनाओं के साथ शेयर कर रहा हूं।
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