दीपावली पर यादों का इक दीया
अक्तूबर 21, 2014
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दीपावली हो या होली, इन त्योहार
के आने से पहले ही बचपन में जो उमंग रहती थी, समय के साथ कहां चली गयी पता ही नहीं
चला। एक बार फिर दीपावली आ गयी लेकिन इस बार उमंग दिल में नाममात्र की भी नहीं बची
है। पिछले साल तक दीपावली पर अगर बस्ती स्थित घर नहीं पहुंच पाता तो पापा का फोन आता
था। फोन पर प्रणाम करने के बाद पापा हालचाल जानने के बाद कहते थे तुम्हारे लिए एक अंडरवियर
और बनियान खरीदा हूं,आना तो लेते जाना। यह पापा का प्यार था, जो नौकरी करने के बाद
भी पिछले कई सालों से मिल रहा था। इस बार त्योहार पर पापा की ओर से नए कपड़े के रूप
में मिलने वाले इस तोहफे की कमी जो खल रही है,उसको किसी बाजार में खरीद नहीं सकता हूं।
पापा के लाड़-प्यार के साथ गलती के लिए मार की जो थाती अपनी थी, अब अनमोल यादें बन
गयी है। पहले मां गयी और अब पापा भी छोड़कर चले गये। अपनी जिंदगी में दीपावली इतनी
काली कभी नहीं थी, जितनी इस साल है।
अमर उजाला वाराणसी में काम करने
के दौरान माता जी ने गोद में दम तोड़ दिया था,
इस साल पापा भी अप्रैल में हम लोगों को छोड़कर चले गये। बीएचयू के सर अस्पताल
में पापा की वह हंसी याद करके आंखों में पानी भर आता है, जो जेहन में कैद है। स्कूल
के दिनों में पापा की मार उनके खड़ाऊ से लेकर लकड़ी की स्केल तक से अपनी गलतियों के
लिए बहुत खायी लेकिन दिल में एक भी चोट नहीं है। पापा की मार पर माता जी का बचाने के
लिए किचन से दौड़कर आना याद आता है तो आंखों से आंसू थमते नहीं हैं। यायावरी की आदत
के चलते अखबार की नौकरी में कई ऐसी दीपावली रही, जब परिवार से बहुत दूर रहा। अमर उजाला
जम्मू-कश्मीर में नौकरी के दौरान परिवार बनारस तो पापा बस्ती में थे। मैं दीपावली के
दिन अपनों से दूर माता रानी के चरणों में आस्था का एक दीप जलाने के लिए पहुंच गया था।
वहां से पापा को फोन करके आर्शीवाद लिया तो कहे माता रानी से प्रार्थना करो वह तुम्हे
घर के नजदीक भेज दो। माता रानी ने पापा की सुन ली, चंद महीनों में ही नोएडा आ गया।
काशी से कश्मीर, दिल्ली से दार्जिलिंग तक पत्रकारिता के पथ पर काम करने के दौरान कई
दीपावली ऐसी रही जब घर-परिवार से सैकड़ों कोस दूर रहा, लेकिन वह उतना नहीं खला जितना
इस बार अम्मा-पापा के बिना प्रकाशपर्व से पहले ही खालीपन महसूस हो रहा है। अम्मा-पापा
के बिना प्रकाशपर्व इस साल काटने के लिए दौड़ रहा है। पिछले साल पापा ने दीपावली पर
जो अंडरवियर और बनियान दिया था,वह आज भी शरीर पर है लेकिन अपने को अधूरा पा रहा हूं।
दीपावली के दिन अम्मा-पापा की याद में एक-एक दीप बनारस के मणिकर्णिका घाट पर जलाने
को सोच रहा हूं, जहां उनको मुखाग्नि दी थी।
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