रोमिंग जर्नलिस्ट की रिपोर्ट 10
सत्रह साल की फिरदौस के नूरानी चेहरे पर अलगाववादियों के जुल्म के घाव पर सिर्फ संवेदना का ही मरहम लगा पाने से दिल में बहुत कोफ्त हुई। ऐसा पहली बार नहीं हुआ था कि जो खबर जिस अंदाज में लिखने की चाह हो, वह उसी अंदाज में छप जाए। अनमने मन से सबेरे की मीटिंग में जाने के बाद जम्मू-कश्मीर वूमेन कमीशन के दफ्तर जाने का फैसला किया। जम्मू-कश्मीर वूमेन कमीशन के दफ्तर का जब साथियों से पता पूछ रहा था तो अधिकांश का जवाब था ‘मालूम नहीं’ था। वूमेन कमीशन का पता पूछने की आवाज संपादक जी के कानों में पड़ी उन्होंने जो पता बताया उस पर जाने के लिए निकल पड़ा। रास्ते में ही था तभी गर्वमेंट मेडिकल कालेज की नर्स रेशमा के नंबर से मोबाइल पर घंटी बजने लगी। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दें। अत: फोन को साइलेंट मोड में डाल दिया। आफिस से निकलकर विक्रम चौक तक ही पहुंचा था कि पाकेट पर मोबाइल फिर रेंगने लगा। मोबाइल पर फिर उसका फोन देखकर रिसीव करते ही आदाब की मधुर आवाज सुनाई पड़ी। आदाब के बाद उसका अगला सवाल था कि फिरदौस की खबर छपी है क्या? दिमाग में रेडीमेड जवाब तैयार हो गया था। जवाब दिया कि संपादक जी ने कहा है कि जब मुकदमा दर्ज नहीं है तो बिना किसी अथारिटी को प्रार्थनापत्र दिए खबर नहीं छापी जा सकती है। फिरदौस की मां जाहिरा ने जो प्रार्थनापत्र दिया है उसको लेकर जम्मू-कश्मीर वूमेन कमीशन के दफ्तर जा रहा हूं। खुदा करे फिरदौस की वहां कुछ मदद हो जाए। यह आश्वासन देने के बाद सिटी बस पकडक़र वूमेन कमीशन के दफ्तर के लिए चल पड़ा। सिटी बस स्टाप से एक किमी दूर वूमेन कमीशन के दफ्तर खोजते-खोजते पहुंच गया। दफ्तर का छोटा सा बोर्ड दूसरी मंजिल पर दिख रहा था, लेकिन गेट पर जंजीर में बंधा ताला बहुत बड़ा था। आफिस के नीचे जितेंद्र उधमपुरी साहित्यकार की नेमप्लेट लगी थी। दरवाजा खटखटाने पर पचास पार के एक सज्जन बाहर आए, पूछा वूमेन कमीशन का दफ्तर कितने बजे खुलता है। इस सवाल को सुनकर ऊपर से नीचे तक देखने के बाद उन्हों पूछा आप कहां से आ रहे हैं.. बताया अमर उजाला से आ रहा हूं,नाम है दिनेश चंद्र मिश्र। यह सुनकर वह बोले आइए अंदर आपको वूमेन कमीशन के बारे में बताता हूं। जम्मू में पहली बार कोई अपने घर में आने का प्रेमाग्रह कर रहा था। पैदल चलते-चलते थक जाने की वजह से आराम करने की नियत से अंदर चला गया। मेरे काशी से जम्मू-कश्मीर आने की वजह सुनने के बाद वह अपने बारे में बताने लगे कि मैं डोगरी का साहित्यकार हूं। डोगरी साहित्य पर काफी काम किया हूं। डोगरी साहित्य में उनकी रचनाओं के साथ उनकी किताबें देखने में जुट गया। अमरउजाला के दरबान से डोगरी सीखने की ललक पहले ही जाहिर कर चुका था, संयोग से आज डोगरी के नामचीन साहित्यकार के घर पहुंचकर ऐसा लगा मानो भगवान ने अंधे को आंखें दे दी हो। ड्राइंग रूम में उधमपुरी जी की समृद्घ साहित्य रचना को देखने के बाद दिल से उनको प्रणाम किया। स्कूली जीवन में साहित्य से रिश्ता सिर्फ परीक्षा तक ही सीमित रहा लेकिन पहली बार जम्मू और कश्मीर में डोगरा लोगों की जीवन्त भाषा डोगरी की प्राचीन परंपरा से रूबरू हुआ। डोगरी के प्रति उनके कार्यों को देखते हुए जब वूमेन कमीशन के सचिव के बारे में सवाल किया तो वह बोले मैं क्षमा चाहता हूं अपनी बात बताने में भूल गया। इस बीच उनकी पत्नी चाय लेकर आ गयी। चाय की चुस्की कई जगह लिया लेकिन जितेंद्र जी के घर में उनकी पत्नी के हाथों की बनी चाय का एक घूंट अंदर जाते ही रोम-रोम में ताजगी महसूस होने लगी। चाय के प्रति मेरी दीवानगी देखकर बोले यह कश्मीरी चाय है। बगैर दूध की चाय में काजू,बादाम और अखरोट के छोटे-छोटे टुकड़े और भी जायका बढ़ा रहे थे। चाय की चुस्की संग वह बताने लगे कि वूमेन कमीशन की सेके्रटरी मोहतरमा हफीजा मुज्जफर हैं। एक सप्ताह वह श्रीनगर में बैठती हैं, एक सप्ताह जम्मू में। आप शुक्रवार को आएंगे तो उनके मुलाकात हो जाएगी। हफीजा मुज्जफ्फर का नंबर देने के साथ बोले वह श्रीनगर के जिस इलाके में उनका मकान है,वहां नेटवर्क का संकट है। हो सकता है नंबर न मिले, आप शुक्रवार को आ जाएंगे तो मुलाकात हो जाएगी। काफी व्यवहार कुशल और पढ़ी-लिखी महिला है। वूमेन कमीशन की सेक्रेटरी से संभावित मुलाकात में तीन दिन का समय था। मैं सोच में पड़ गया कि रेशमा का फिर फोन आया तो क्या जवाब देंगे? चाय की चुस्की संग यह सोच ही रहा था कि जितेंद्र जी फिर डोगरी भाषा को लेकर अपनी चर्चा आगे बढ़ाना शुरू कर दिए। उनका कहना था कि महाराजा रणवीर सिंह (1857-1885) के शासनकाल के दौरान डोगरी जम्मू और कश्मीर राज्य की सरकारी भाषा थी। उर्दू तो बाद में राज्य की सरकारी भाषा और शिक्षा का माध्यम बनी। एक सरकारी समिति की संस्तुति पर 1955 में डोगरी के लिये देवनागरी लिपि को अपनाया गया और वर्ष 1957 में इसे राज्य के संविधान में शामिल कर लिया गया। जम्मू और कश्मीर देश का एकमात्र राज्य है, जिसका अपना पृथक संविधान है। राज्य के संविधान में उर्दू को राजभाषा का स्थान दिया गया है, परन्तु इसमें यह भी कहा गया है कि जब तक विधायिका द्वारा अन्य कोई वैधानिक व्यवस्था नहीं की जाती, सभी सरकारी कार्यों के लिये अंग्रेजी का उपयोग होता रहेगा। कश्मीरी, डोगरी, गोजरी (गूजरी), बाल्टी (पाली), दर्दी, पंजाबी, पहाड़ी और लद्दाखी को क्षेत्रीय भाषाओं के तौर पर राज्य के संविधान की छठी अनुसूची में सम्मिलित किया गया है । जम्मू-कश्मीर में भाषा के प्रति ढेरों जानकारी देने के बाद जितेंद्र उधमपुरी जी की पीड़ा भी बाहर आने लगी थी। बोले आज की तारीख में किसी भी अखबार में डोगरी के लिए कोई कालम नहीं है। आज के युवा डोगरी को बोलने में परहेज करते हैं। बातचीत के दौर में जानकारी मिली कि जम्मू संभाग की मातृभाषा डोगरी को संविधान के आठवें शेडयूल में शामिल होने के बाद भी अभी तक संभाग के केवल 6 जिलों में ही डोगरी पढ़ाई जा रही है।
डोगरी भाषा को 22 दिसंबर 2003 को संविधान के आठवें शेडयूल में शामिल किया गया था और उसी वर्ष से प्राइमरी एवं अपर प्राइमरी सरकारी स्कूलों में इसे पढ़ाया जा रहा है। दिमाग में तुरंत आइडिया आया कि 22 दिसंबर को डोगरी डे के रूप में अखबार में विशेष आयोजन का सुझाव दे सकते हैं। एक घंटे से ज्यादा समय तक चली मुलाकात में खबर के नाम पर डोगरी के बारे में ‘ढेरों जानकारी’ और ‘हफीजा मुज्जफ्फर से जुमा को मिलने की आस’ ही थी। उधमपुरी जी को प्रणाम करके चल दिया। खबर कुछ हाथ में थी ही नहीं, कौन सी खबर लिखेंगे? यह सब सोच रहा था कि फोन पर घंटी बजी तो देखा रेशमा का नाम स्क्रीन पर चमक रहा था। फोन रिसीव किया तो बताया कि वूमेन कमीशन दफ्तर गए थे, सेक्रेटरी से शुक्रवार को मुलाकात होगी। यह सुनकर रेशमा थोड़ी मायूस होने के साथ बोली फिरदौस अब पहले से थोड़ा बेहतर है, अगर मिलना चाहे तो आ सकते हैं। घड़ी में देखा दो बज रहे थे, आफिस पहुंचने से पहले जाने की संभावना देखकर हां बोल दिया। फोन कट होने के बाद देखा दस मिनट से ज्यादा बातचीत हुई। जम्मू-कश्मीर जाने के एक पखवारे बाद भी अखबार की ओर से कारपोरेट सिम न मिल पाने से रोमिंग चार्ज का जेब पर बोझ बढऩे की भी चिंता होने लगी, खैर इस चिंता को वहीं छोडक़र चल दिया मेडिकल कालेज फिरदौस से मिलने।
क्रमश:
डोगरी भाषा को 22 दिसंबर 2003 को संविधान के आठवें शेडयूल में शामिल किया गया था और उसी वर्ष से प्राइमरी एवं अपर प्राइमरी सरकारी स्कूलों में इसे पढ़ाया जा रहा है। दिमाग में तुरंत आइडिया आया कि 22 दिसंबर को डोगरी डे के रूप में अखबार में विशेष आयोजन का सुझाव दे सकते हैं। एक घंटे से ज्यादा समय तक चली मुलाकात में खबर के नाम पर डोगरी के बारे में ‘ढेरों जानकारी’ और ‘हफीजा मुज्जफ्फर से जुमा को मिलने की आस’ ही थी। उधमपुरी जी को प्रणाम करके चल दिया। खबर कुछ हाथ में थी ही नहीं, कौन सी खबर लिखेंगे? यह सब सोच रहा था कि फोन पर घंटी बजी तो देखा रेशमा का नाम स्क्रीन पर चमक रहा था। फोन रिसीव किया तो बताया कि वूमेन कमीशन दफ्तर गए थे, सेक्रेटरी से शुक्रवार को मुलाकात होगी। यह सुनकर रेशमा थोड़ी मायूस होने के साथ बोली फिरदौस अब पहले से थोड़ा बेहतर है, अगर मिलना चाहे तो आ सकते हैं। घड़ी में देखा दो बज रहे थे, आफिस पहुंचने से पहले जाने की संभावना देखकर हां बोल दिया। फोन कट होने के बाद देखा दस मिनट से ज्यादा बातचीत हुई। जम्मू-कश्मीर जाने के एक पखवारे बाद भी अखबार की ओर से कारपोरेट सिम न मिल पाने से रोमिंग चार्ज का जेब पर बोझ बढऩे की भी चिंता होने लगी, खैर इस चिंता को वहीं छोडक़र चल दिया मेडिकल कालेज फिरदौस से मिलने।
क्रमश:
dinesh tumhari post padanke ke baad maaza aa raha hai. pls continue
जवाब देंहटाएं"kisi dard mil sake to le udhaar " ka jo zazba aapne firdaus ke liye dikhaya hai wo kabill e taareef hai .aaj ke vyast jeewan me jab kisi ko apno ke liye waqt nahi milta aise me ek aparichit ladaki ke prati itna samvednatmak drishtikon rakhna prashnsnneeya hee nahi balki anukarneeya hai . Jitendra ji ki peeda ko samajh kar aapne dogari bhasha ko samman dilane ke liye jis vichaardhara se avagat karaya woh bhi padh kar achchha laga, yatra anwarat chal rahi hai saath hi saath agali kadiyon ke liye utsukata bhi badhati ja rahi hai . ishwar aapko kaamyaabi ke shikhar tak pahunchaye !! my all good wishes to you .- priti
जवाब देंहटाएंkeep it up
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